आर्य और काली छड़ी का रहस्य-38
अध्याय-13
मुकाबला
भाग-2
★★★
आर्य ने आचार्य वर्धन को बचाने के लिए एक योजना बना ली थी। लेकिन यह पूरी तरह से कहा नहीं जा सकता था कि वह योजना काम करेगी या नहीं। लेकिन उसके काम करने की एक संभावना जरूर थी और सब बस उसी संभावना के लिए काम करने वाले थे।
पूरी योजना सुन लेने के बाद हिना आर्य से पूछा “तो तुम अब क्या करने वाले हो...?”
आर्य ने जवाब दिया “अब मैं अचार्य वर्धन से लड़ाई करूंगा। उस लड़ाई में जितना हो सका मैं रोशनी वाली तलवार का इस्तेमाल करूंगा। हमें काली छड़ी को ज्यादा से ज्यादा हमले करने के लिए उकसाना है और उसे मजबूर करना है वह एक बड़ा हमला करें।”
“लेकिन इन सब में हमारा क्या काम होगा...?” हिना खुद की तरफ देखते हूए बोली, इसके बाद उसने अचार्य ज्ञरक और आयुध की तरफ भी देखा।
आर्य ने जवाब दिया “तुम सब एक बार के लिए तो पीछे खड़े रहना। जब तक जरूरत ना पड़े तब तक कुछ भी मत करना, आवश्यकता पड़ने पर मैं तुम लोगों को बता दूंगा तुम लोगों को क्या करना है।”
हिना ने हां में सर हिला दिया। आचार्य ज्ञरक बोले “अभिशापित मंत्र अगले 3 या 4 मिनट में पूरी तरह से असर कर जाएगा। तुम तब तक अपना मोर्चा संभाल लो। मैं इन दोनों को सुरक्षित जगह पर लेकर जाता हूं।”
अचार्य ज्ञरक ने आयुध को इशारा किया और उसे अपनी और बुला लिया। आयुध इशारों इशारों में हिना से यह जानने की कोशिश कर रहा था कि क्या हुआ है, मगर अभी के लिए हिना ने उसे चुप रहने के लिए कहा। इसके बाद उसने आयुध का हाथ पकड़ा और उसे पकड़ कर आचार्य ज्ञरक के साथ चल पड़ी। जब सभी सुरक्षित जगह पर पहुंच गए तब आयुध खुद को बोलने से नहीं रोक सका। उसने हिना से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा “आखिर हुआ क्या है? और हम अभी करने क्या जा रहे हैं? हम वहां अचार्य वर्धन को और आर्य को अकेले छोड़कर यहां क्यों आ गए हैं?”
हिना ने उसे जवाब देते हुए कहा “इस वक्त आर्य और अचार्य वर्धन में लड़ाई होने वाली है। एक बड़ी लड़ाई और इसीलिए हम सब यहां आए हैं।”
“बड़ी लड़ाई...!!” आयुध यह सुनकर हैरान हो गया था। उसने पलट कर पीछे आर्य की तरफ देखा। वह तलवार के साथ हाॅल के बीचो-बीच जा रहा था। उसने अचार्य ज्ञरक से पुछा “मगर अचार्य ज्ञरक, लड़ाई के लिए आर्य क्यों? वह बस अभी-अभी आश्रम में आया है और उसे लड़ने का भी नहीं पता। आखिर वह अचार्य वर्धन से क्यों लड़ाई करने जा रहा है? और आपने हमें अभी तक यह भी नहीं बताया कि उसके पास वह रोशनी वाली चमकती तलवार कहां से आई?”
यह सवाल सुनकर हिना को याद आया उसे भी अभी इसका नहीं पता था। अर्थात वह भी इस बात के बारे में नहीं जानती थी आर्य लड़ने के लिए आगे क्यों जा रहा है और फिर उसके पास वो तलवार कहां से आई। हिना ने भी उसी वक्त आचार्य ज्ञरक से पूछ डाला “हां अचार्य, मुझे भी अभी तक इन सवालों का जवाब नहीं पता। बताइए आखिर उसमें ऐसा क्या खास है?”
आचार्य ज्ञरक उन दोनों की ही तरफ देखते हुए बोले “क्योंकि यही वह लड़का है जिसका जिक्र भविष्यवाणी में हुआ है...” यह सुनकर हिना और आयुध दोनों ही स्तब्ध रह गए। इसके बाद आचार्य ज्ञरक ने उन दोनों को बताया उन्हें कैसे पता चला आर्य ही भविष्यवाणी वाला लड़का है। उन्होंने बताया उन्हें तलवार की वजह से पता चला। तलवार भविष्यवाणी वाले लड़के के लिए ही बनी थी और उसमें ऐसे गुण थे जिसमें वह भविष्यवाणी वाले लड़के को अपनी ताकत दे सकती थी। यानी खुद के साथ-साथ उसे भी रोशनी से चमका सकती थी। यह पूरी बात सुन कर उनके स्तब्ध रहने वाले भाव आश्चर्य में बदल गए और इसके बाद गौरव महसूस करने वाले क्षणों में। दोनों ही इस बात से खुश थे वह ऐसे लड़के के साथ रह रहे थे जो भविष्यवाणी के हिसाब से शैतान को मारने के लिए बना है। मगर उनकी खुशी का ध्यान जल्द ही सामने वाले दृश्यों ने बदल दिया।
वहां अचानक कुछ अजीब सी ठंडी हवाओं के झोंके आने लगे थे। आचार्य वर्धन का शरीर दीवार के पास बिना किसी हरकत के सुन पड़ा था। उनका खून तो पहले ही काला हो चुका था मगर अब उनकी चमड़ी काली हो रही थी। तभी अचानक हवा के झोंकों ने उनके चोगे वाले कपड़े को उड़ाया। ऐसा करते ही उनके शरीर में हलचल होने लगी। उनकी अंगुलियां धीरे-धीरे हिल रही थी। आंखों की पुतलियों में भी खिंचाव आ रहा था। अचानक अगले ही पल वह उठ खड़े हुए। उनके उठते ही उनके रूप में और भी भयानक परिवर्तन हुए। उनके बाल ऊपर हवा में अजीब से तरीके से लहराने लगे। लंबी दाढ़ी बारीक और पतले लंबे जीवों की तरह हरकत करते हुए उनकी गर्दन पर रेंगने लगी। उनका सफेद चौगे का रंग भी बदल कर काला हो गया। काली चमड़ी, काला चौगा, ऊपर की तरफ उड़ते हुए बाल, दाढ़ी का अजीब से लंबे जीवो की तरह गर्दन पर रेंगना, यह उन्हें काफी ज्यादा भयावहक बना रहा था। उनके भयावहक रूप की वजह से आसपास के दृश्य भी भयावहक हो रहें थे।
आचार्य वर्धन ने अपने दाएं हाथ को हवा में किया। उनके अपने हाथ को हवा में करते ही दूर जमीन पर पड़ी काली छड़ी उड़ते हुए उनके हाथ में आ गई। छड़ी के हाथ में आ जाने के बाद उनके कदम भी जमीन से ऊपर उठने लगे। वह भी हवा में उड़ने वाली स्थिति में जाने लगे।
आर्य आचार्य वर्धन को उड़ता देख थोड़ा सा पीछे हट गया। उसे आचार्य वर्धन के हमलों का सामना करने के लिए पर्याप्त जगह चाहिए थी जिसके लिए खुली जगह का होना जरूरी था।
आचार्य वर्धन ने आर्य को तीखी नजरों से घुरा। इसके बाद वह बोले मगर थोड़ा अजीब आवाज में, उनकी आवाज में मर्दाना आवाज के साथ साथ एक बूढ़ी औरत की आवाज भी शामिल थी। दोहरी आवाज में उन्होंने कहा “शैतान जानता था, कोई भी अपने सौदेबाजी से पीछे हट सकता है। इसलिए उसने मुझे पूरी ताकत दी, मुझे पूरे अधिकार दिए, उन्होंने मुझे पूरी क्षमता दी ताकि कोई भी अपने सौदेबाजी से ना मुकर सके। अगर कोई अपने सौदेबाजी से मुकरेगा तो मैं अभिशापित मंत्रों के इस्तेमाल से उस पर कब्जा कर सकती हूं। मैं धारक को अपनी आंख पर नचा सकती हूं। हा हा हा...” आखिर में आचार्य वर्धन ने अपने दोनों हाथ हवा में फैलाए और डरावनी हंसी हंसने लगे। डरावनी हंसी में भी औरत और मार्दना वाली आवाज मिली हुई थी। आर्य यह अच्छे से समझ गया था कि आवाज में भले ही मर्दाना आवाज की झलक साथ में हो, मगर अभी आचार्य वर्धन अचार्य वर्धन नहीं थे बल्कि वह काली छड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। वह जो भी कह रहे थे वह सभी शब्द काली छड़ी के थे।
आर्य ने कहा “तो तुम्हें यहां रोकने की कोशिश भी कौन कर रहा है। तुम पूरी तरह से अपना सौदा पूरा करने के लिए स्वतंत्र हो। मगर हां, आश्रम का एक सदस्य होने के नाते मैं यह कोशिश जरूर करूंगा कि पीछे के अंधेरी परछाइयों को ना आजाद होने दुं।” वह जानबूझकर उसे बहकाने वाला काम कर रहा था लेकिन सूझबूझ और समझदारी से। वह काली छड़ी को यह भी नहीं कह सकता था कि उसे प्रत्यक्ष तौर पर लड़ाई करनी है अन्यथा काली छड़ी बड़े हमलो को करने में सचेत हो जाएगी। आर्य अपनी बहकाने वाली राजनीति में आगे बोला “मैं आश्रम का एक जिम्मेदार सदस्य होने का फर्ज निभा रहा हूं। अगर आज मेरी इसमें जान भी चली जाती है तो मुझे बिल्कुल भी दुख नहीं होगा। आपुति मुझे इस बात की खुशी होगी कि मैंने लड़ते हुए अपनी जान गवाई हैं। मैं आखिरी समय तक आश्रम और आश्रम के बाहर की दुनिया की भलाई के लिए लड़ता रहा हूं। यह बात हमेशा मुझे गौरवितं करती रहेगी।”
यह सुनकर सामने से काली छड़ी ने कहा, यानी आचार्य वर्धन के रूप में काली छड़ी ने कहा “तुम और तुम्हारे यह तुच्छ आश्रम वासी, तुम सब अपनी तरफ से चाहे कितनी भी कोशिश क्यों ना कर लो... तुम लोग कभी भी मेरे मालिक को नहीं रोक पाओगे।” काली छड़ी अपने मालिक के तौर पर शैतान के शहंशाह की बात कर रही थी। “यह जानते हुए भी तुम आश्रमवासी मौत के मुंह में खुद को ढालने के लिए आगे आ जाते हो।”
आर्य ने कहा “क्योंकि हमारा यही काम है। शैतान के मकसद की रुकावट बनना ही हमारा काम है।” आर्य एक अच्छे आश्रमवासी की तरह बात करने लगा था। “ हम नहीं जानते कल आने वाले समय में क्या होगा, हम शैतान को रोकने में कामयाब हो पाएंगे या नहीं, लेकिन इतना जरूर है हम कल भी कोशिश करते रहेंगे। हम तब तक कोशिश करते रहेंगे जब तक कर सकते हैं। हम हमेशा मुकाबले के लिए तैयार रहेंगे।”
“आह....” काली छड़ी ने ऊपर हवा में उड़ते हुए पूरे हॉल का चक्कर निकाला “तुम लोग बातें तो बहुत अच्छी करती हो। हम शैतान को रोकते रहेंगे.... हम शैतान को रोकने की कोशिश करते रहेंगे.... हम मुकाबले के लिए तैयार हैं....! बकवास बातें! तुच्छ बातें! अतुलनीय और अस्वादहीन बातें! तुम लोगों के पास आपनी बातों की सिवाए और है क्या? हा हा हा” उसने फिर से एक हंसी हंसी “ बातें ही तो करते हो तुम लोग जिंदगी भर। कितनी बड़ी तादाद थी तुम लोगों की..... हमसे लड़ते-लड़ते मुट्ठी भर रह गए। अब तुम लोग इतने भी नहीं हो की खुद की हिफाजत कर सको। लेकिन बातें! बातें सीधे शैतान से मुकाबला करने की करते हो! ही ही ही....!” अबकी बार वाली हंसी में सिर्फ औरतों की आवाज थी। काली छड़ी ने तंज कसते हुए आगे कहा “पहले कम से कम खुद की हिफाजत करने वाले तो बन जाओ... उसके बाद शैतान से मुकाबला करने की सोचना......ही ही ही।”
तंज का जवाब आर्य ने तंज से दिया। “बातें करने में तो तुम भी कुछ कम नहीं हो। अब तक तो तुम्हें अपनी तरफ से दिखा देना चाहिए था कि तुम क्या कर सकती हो। लेकिन शायद लगता है तुम्हारे पास भी शिवाय बातों की और कुछ भी नहीं है।”
यह सुनकर काली छड़ी भड़क गई। उसने होल का चक्कर निकालना बंद किया और आर्य की और आने लगी। आर्य ने उसे पास आता देख खुद को और पीछे कर लिया। कुछ दूर आकर आचार्य वर्धन ( काली छड़) ठहर गए। “लगता है तुम्हें बहुत जल्दी है मरने की। इस जल्दबाजी में तुम कुछ देर और जिंदा रहने की इच्छा भी नहीं रखना चाहते। अगर ऐसा है तो लो बुकतो...”
आचार्य वर्धन ने काली छड़ी को सामने किया और काले गोले का एक छोटा हमला कर दिया। आर्य ने हमले से बचाव के लिए तलवार का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि वह तुरंत गुलाटी खाता हुआ दूसरी तरफ चला गया। वह अपनी तरफ से यह दिखाने की कोशिश कर रहा था की हमले के बचाव के लिए वो संभावित कदमों का इस्तेमाल कर रहा है, ना कि ऐसे कदमों का इस्तेमाल जिसमें कोई रणनीति छुपी हो। उसके दूसरी ओर गुलाटी खा लेने के बाद आचार्य वर्धन ने खुद को पलट कर उस और किया। वहां दोबारा उन्होंने एक काले गोले का हमला किया। इस बार आर्य ने फिर से गुलाटी खाई और जगह बदलता हुआ पहले वाली जगह पर आ गया।
वहां आ जाने के बाद उसने रोशनी वाली तलवार पर अपनी पकड़ तेज कर ली। पकड़ तेज करने के साथ-साथ उसने खुद को नीचे भी झुका लिया। यह इशारा था.... इशारा इस बात का कि वह अब रोशनी वाली तलवार से हमलो का सामना करेगा। वह अब अपनी पूरी क्षमता से लड़ने के लिए तैयार था....। उसे इस तरह की स्थिति में आता देख हिना और आयुध दोनों अपनी सांस रोक कर खड़े हो गए थे। वही आचार्य ज्ञरक के दिल की धड़कन तेज हो गई थी। यह एक रोमांचकारी मुकाबला होने वाला था।
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